Sharmishtha Panoli हाल ही में सोशल मीडिया पर एक नाम अचानक चर्चा में आया- Sharmishtha Panoli। लॉ की छात्रा और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर के तौर पर सक्रिय शर्मिष्ठा को कोलकाता पुलिस ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आरोप में गिरफ़्तार किया। यह गिरफ़्तारी इंस्टाग्राम पर उनके द्वारा किए गए एक पोस्ट को लेकर हुई, जिसे कुछ लोगों ने आपत्तिजनक माना और इस पर कड़ी प्रतिक्रियाएँ भी कीं।
कौन हैं Sharmishtha Panoli ?
Sharmishtha Panoli महाराष्ट्र की रहने वाली हैं और कानून की पढ़ाई कर रही हैं। वे सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहती हैं और अपने विचार खुलकर साझा करती हैं। हाल ही में उन्होंने “ऑपरेशन सिंदूर” नामक ट्रेंड पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने बॉलीवुड सितारों की चुप्पी पर सवाल उठाए थे। इस वीडियो में कुछ टिप्पणियों के लिए उन्हें धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का दोषी ठहराया गया था।

Sharmishtha Panoli कैसे हुई गिरफ्तारी?
Sharmishtha Panoli का वीडियो वायरल हुआ और इसके बाद कोलकाता पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की। उन्हें हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर कोलकाता लाया गया। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 295ए और 505 के तहत मामला दर्ज किया गया, जो धार्मिक समूहों के बीच नफरत फैलाने, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और शांति भंग करने से संबंधित है।
Sharmishtha Panoli सोशल मीडिया पर समर्थन और विरोध
शर्मिष्ठा Panoli की गिरफ्तारी ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस को जन्म दिया। कई लोगों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया, जबकि कुछ ने पुलिस कार्रवाई को सही ठहराया।

कंगना रनौत ने Sharmishtha Panoli का समर्थन करते हुए लिखा, “उसे धमकाने की जरूरत नहीं है, उसे तुरंत रिहा करो।” डच नेता गीर्ट वाइल्डर्स ने भी ट्वीट कर शर्मिष्ठा को ‘साहसी’ बताया और भारत सरकार से उसकी रिहाई की मांग की। राजनीतिक हलचल इस घटना ने राजनीतिक मोड़ भी ले लिया। पश्चिम बंगाल भाजपा नेताओं ने कोलकाता पुलिस की त्वरित कार्रवाई पर सवाल उठाए और पूछा कि सनातन धर्म का अपमान होने पर प्रशासन इतना सक्रिय क्यों नहीं होता? क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है? इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारत में सोशल मीडिया पर राय व्यक्त करना अब जोखिम भरा हो गया है? क्या धार्मिक भावनाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच कोई संतुलन बना है? संविधान भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह स्वतंत्रता ‘जितनी संभव हो उतनी सीमाओं के भीतर’ है। ये वो सीमाएं हैं जो अक्सर धुंधली हो जाती हैं और विवाद पैदा करती हैं। निष्कर्ष: शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं है – यह इस बात का संकेत है कि सोशल मीडिया, धर्म और कानून के बीच त्रिकोणीय संघर्ष समाज को कैसे प्रभावित कर रहा है। यह महत्वपूर्ण है कि नागरिक सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी से बोलें, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को राजनीतिक या धार्मिक दबावों से दबाया न जाए।
क्या आप शर्मिष्ठा या इस मामले में पुलिस की कार्रवाई का समर्थन करते हैं? नीचे कमेंट में अपनी राय ज़रूर साझा करें।